जीवन की आपा-धापी में हम कब खो जाते हैं, पता ही नहीं चलता। धीरे-धीरे हम उस शक्श को भूल जाते हैं जो हम में कहीं ज़िंदा है। जो बहुत ऊँची उड़ान भरना चाहता है। दुनिया को अपनी मुट्ठी में कैद कर लेना चाहता है। जो पूरी दुनिया को चिल्ला-चिल्ला कर बताना चाहता है की - "मैं भी हूँ.... मुझे भी आसमान छूना है..... अपनी सीमाओं को वहाँ पहुँचाना है जहाँ कोई नहीं पहुँचा...."
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Raushan Jha
नमस्कार...
हमें जीवनभर अपने कर्मों के प्रति प्रयत्नशील होना चाहिए। क्योकि हमारे वश में सिर्फ हमारे कर्म हैं, उनका परिणाम क्या होगा ये हम कभी नहीं बता सकते। "श्रीमद भगवदगीता" में भी भगवान श्री कृष्ण ने कहा है - "कर्म करो फल की चिंता मत करो ..." हम सिर्फ अपना कर्म पूरी तन्मयता से कर सकते हैं, उसका परिणाम तो उस त्रिलोकधारी, सर्व-व्यापी परमात्मा के हाथों में हैं।
अतः ये Blog मेरे प्रयत्नों का 'अगला अध्याय', आप सभी के सामने बिना परिणाम की चिंता या आशा किये, पूरी क्षमता के साथ करने की कोशिश कर रहा हूँ। बस आप सभी के परामर्शों की आशा अवश्य करता रहूँगा।
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