
क्रांत स्वर आह्लाद का
इस वेबसाइट पर अपनी पहली कविता प्रकाशित करने जा रहा हूँ। आशा करता हूँ की आप
सभी मेरी इस तुच्छ रचना को अवश्य सराहेंगे। आपकी आलोचनाओं का स्वागत है ताकि मेरे
अन्तः से स्वयं ही सारा मैल सारी त्रुटियां अपने आप गायब हो जायें। जैसा कबीर ने कहा है -
निंदक नियरे रखिये आँगन कुटी छवाय
बिन साबुन पानी बिना निर्मल करे सुभाय।।
प्रस्तुत कविता में कर्म के महत्व को बताते हुए कहा गया है की - व्यक्ति, जो जीवन के होड़ में
आगे बढ़ना ही भूल गए हैं, जो कर्म करना ही भूल गए हैं, वो जीवन में सबकुछ खो देते हैं।
उन्हें तो बाकी लोग धीरे-धीरे धिक्कारना भी बंद कर देते हैं। इन्ही अकर्मठों के बीच बैठा एक
ऐसा शक्श जो कभी कर्मठ हुआ करता था, परन्तु न जाने कहाँ भटक गया, खो गया। वह
पुनः अपने कर्मों से अपनी मंजिल पा सकता है।